मेरे और राखी के बीच प्रथम संभोग के बाद अगले दिन उसकी परीक्षा थी, जिसे दिलवाकर मैं शाम की ट्रेन से उसे गाँव वापस छोड़ आया।
दो महीने बाद उसे महिला छात्रावास में कमरा मिल गया और उसकी
पढ़ाई-लिखाई शुरू हो गई। तभी सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षाओं का परिणाम
घोषित हुआ और मैं उनमें सफल रहा। अब मुझे मुख्य परीक्षाओं की तैयारी करनी
थी। मुख्य परीक्षाओं के लिए मेरे विषय थे हिंदी और राजनीति विज्ञान। मेरे
मकान मालिक को पता चला कि मेरा प्रारंभिक परीक्षाओं में चयन हो गया है तो
उन्होंने मुझे बधाई दी और मुख्य परीक्षाओं के बारे में मेरी योजना जानने के
बाद मुझसे बोले- तुम्हारी हिंदी तो काफी अच्छी होगी, तभी तुमने मुख्य
परीक्षाओं के लिए हिंदी का चुनाव किया है। तुम मेरी बेटी नेहा को हिंदी पढ़ा
दिया करो। तुम तो जानते ही हो कि वो हिंदी माध्यम की छात्रा है। गणित,
विज्ञान तो कोचिंग में पढ़ लेती है हिंदी पढ़ाने वाला कोई नहीं मिलता। हिंदी
में उसके नंबर भी बहुत कम आते हैं।
मैंने कहा- अंकल, मेरे पास खुद ही पढ़ने के लिए इतनी सामग्री है कि समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। मैं कैसे उसे समय दे सकूँगा।
अंकल बोले- बेटा, रोज मत पढ़ाना, कभी सप्ताह में एक दिन रख लो। वैसे
भी हिंदी ऐसा विषय है कि सप्ताह में एक दिन भी किसी से मार्गदर्शन मिल जाए
तो विद्यार्थी स्वयं ही तैयारी कर लेता है।
मैं बोला- ठीक है अंकल, रविवार को मैं उसे एक घण्टा पढ़ा दिया करूँगा।
अंकल खुश हो गए, उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया कि मेरा मुख्य परीक्षाओं में चयन हो जाए।
रविवार को मैं "मुक्तिबोध" की लंबी कविता "अँधेरे में" पढ़कर समझने की कोशिश कर रहा था जब दरवाजे पर दस्तक हुई।
'यहाँ कौन आ गया?' सोचते हुए मैंने दरवाजा खोला। सामने स्कर्ट और
टॉप पहने नेहा खड़ी थी। इसके पहले मेरी दो तीन बार उससे औपचारिक बातचीत भर
हुई थी।
वो बोली- भैय्या, मैं हिंदी पढ़ने के लिए आई हूँ। पापा ने कहा है रविवार को मैं आपसे हिंदी पढ़ लिया करूँ।
मैं बोला- आओ बैठो, किताब लाई हो क्या?
उसने अपने हाथ में थमी किताब मुझे थमा दी। किताब पर उसने अखबार
चढ़ाया हुआ था, किताब थी काव्यांजलि, जो उन दिनों उत्तर प्रदेश में विज्ञान
संकाय के छात्रों को सामान्य हिंदी विषय में पढ़ाई जाने वाली किताबों में से
एक थी।
परीक्षा में इसका एक पूरा पैंतीस अंकों का पर्चा होता था। मैंने उसे
हिंदी में ज्यादा नंबर पाने के कुछ तरीके बताए, सुनकर वो खुश हो गई। फिर
मैंने कबीर के कुछ दोहों की व्याख्या की और उसके बाद मैं बोला- आज के लिए
इतना ही काफी है। बाकी अगले सप्ताह।
वो खुश होकर चली गई।
अगले रविवार को सुबह-सुबह मैंने पास के पीसीओ पर जाकर राखी के
छात्रावास में फोन लगाया। वो फोन पर आई तो मैंने पूछा- कैसी चल रही है
तुम्हारी पढ़ाई आजकल?
वो बोली- अच्छी चल रही है। आप बताइए आपकी प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम घोषित होने वाला था?
मैं बोला- हो गया। अब मुख्य परीक्षाओं की तैयारी कर रहा हूँ।
वो वोली- इतनी अच्छी खुशखबरी बिना मिठाई के दे रहे हैं?
मैं बोला- अब फोन से मिठाई खाएगी क्या?
वो बोली- मिठाई लेकर जल्दी से आइए।
मैंने बाजार से तीन चार तरह की मिठाइयाँ मिलाकर आधा किलो का पैकेट बनवाया और लेकर उसके छात्रावास की तरफ चल पड़ा।
छात्रावास के गेट पर पहुँचकर मैंने अंदर संदेशा भिजवाया तो वो बाहर
निकली। उसने एकदम कसी जींस और टॉप पहना हुआ था। पिछले दो तीन महीनों में
उसके उरोज और नितंबों में काफी बदलाव आया था और वो भरे भरे लग रहे थे। क्या
संभोग भी शरीर के हार्मोनल बदलावों की गति बढ़ा सकता है, मैंने सोचा।
जीव विज्ञान में मेरा सामान्य ज्ञान कमजोर पड़ रहा था।
तभी उसकी आवाज मेरे कानों में पड़ी- लाइए, पैकेट दीजिए, मैं अपनी सहेलियों को देकर आती हूँ।
कहकर उसने पैकेट मेरे हाथों से छीन लिया और छात्रावास के भीतर चली गई।
वो बाहर आई तो पैकेट उसके हाथों में नहीं था, वो बोली- ये तो था मेरी सहेलियों का हिस्सा, अब बताइए मैं क्या खाऊँ।
मैं बोला- चलो, चलकर और खरीद लेते हैं।
साथ साथ चलते हुए हम मिठाई की दुकान पर आए। मिठाई लेने के बाद मैं
उससे बोला- यहाँ तो बहुत भीड़ है। चलो मेरे कमरे पर चलकर आराम से खाते हैं।
इतना कहकर मैंने उसके चेहरे की ओर देखा। उसके चेहरे से मुस्कान धीरे
धीरे गायब हो गई और वो भाव उभर आए जो समर्पण करने को तैयार लड़कियों की
आँखों में होते हैं और जिन्हें मैं पहले भी उसकी आँखों में देख चुका था।
उसके बाद पूरे रास्ते हममें कोई बात नहीं हुई। मैं आगे आगे और वो
मेरे पीछे पीछे चलती रही। मुड़कर देखने की मुझमें हिम्मत नहीं थी। वैसे ही
चुपचाप हम कमरे पर पहुँचे।
उसके अंदर आने के बाद मैंने दरवाजा बंद किया, वो फोल्डिंग बेड पर
बैठ गई। पिछले संभोग के बाद से मैंने दूसरे फोल्डिंग बेड को हटाया नहीं था।
मैंने डिब्बा खोलकर उसे मिठाई दी और रसोई से एक गिलास पानी लाकर दिया।
उसने थोड़ी सी मिठाई खाई और थोड़ा सा पानी पिया फिर गिलास बेड के नीचे रख
दिया। मैंने उसके पास आकर उसकी आँखों में झाँका, उसकी साँसें तेज हो गई थीं
और टॉप में कैद उसके वक्ष तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे।
मैंने उसके कंधों पर अपने दोनों हाथ रखे। उसने अपने हाथ मेरी कमर पर
रख दिए। मैंने उसको खुद से सटा लिया। उसका चेहरा मेरी छाती से सट गया।
मैंने उसे कंधों से पकड़कर उठाया और अपनी बाहों में भींच लिया। उसने भी मुझे
कसकर पकड़ लिया। मेरे हाथ धीरे धीरे उसकी पीठ पर फिरने लगे।
"राखी दो-तीन महीनों में ही कितनी गदरा गई है !" मैंने सोचा।
मैंने अपना हाथ पीछे से राखी की जींस में डालने की कोशिश की। जींस
बहुत तंग थी। केवल हाथ का उँगलियों वाला हिस्सा ही अंदर घुस सका। मैंने
हाथ बाहर निकाला और जींस के ऊपर से ही उसके नितंबों को दबाना शुरू किया। यह
मेरे लिए एक नया अनुभव था। हाथों को महसूस तो जींस का मोटा कपड़ा ही हो रहा
था लेकिन एक अलग ही आनन्द आ रहा था। शायद यह इसलिए था कि अब तक जींस पहनी
हुई लड़कियों के नितंब देखदेखकर मन में उनको मसलने की ख्वाहिश इतनी तेज हो
चुकी थी कि जींस का कपड़ा नंगे नितम्बों को सहलाने से ज्यादा मजा दे रहा था।
यह कामदेव जो न करवाये सो थोड़ा।
थोड़ी देर में मेरा मन उसके नितम्बों से भर गया तो मैंने उसे बेड पर लिटा दिया। उसकी आँखें बंद थी।
मैंने उससे कहा- आँखें खोल लो राखी, अब मुझसे कैसी शर्म?
उसने अपनी आँखें खोलीं, मैं उसके ऊपर लेट गया। मेरा उभरा हुआ पजामा
उसके जाँघों के बीच उभरे जींस से सट गया। मैं उसके होंठों को अपने होंठों
के बीच लेकर चूसने लगा और मिठाई की मिठास मेरे मुँह में घुलने लगी। फिर
मैंने उसकी टीशर्ट ऊपर उठानी शुरू की।
उसने सफेद रंग की ब्रा पहनी हुई थी। उसने मेरा मलतब समझकर अपने हाथ
ऊपर उठाए और मैंने उसकी टीशर्ट खींचकर बाहर निकाल दी। मैंने ताबड़तोड़ उसके
शरीर के नग्न हिस्सों को चूमना शुरू किया। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलकर
कमरे में गूँजने लगीं। शायद वो भी इन दो महीनों में उतना ही तड़पी थी जितना
मैं तड़पा था।
मैंने उसके ब्रा का बायाँ कप हटा दिया और उसका चुचूक मुँह में भर कर
चूसने लगा। वो मचलने लगी पर मैं अब कहाँ रुकने वाला था। मैंने उसका चुचूक
अपने दाँतों के बीच पकड़ा और धीरे धीरे काटने लगा। बीच बीच में मैं थोड़ा जोर
से भी काट लेता था और वो चिहुँक उठती थी। मगर यहाँ ऊपर कौन सुनने वाला था।
यही हाल मैंने उसके दूसरे चुचूक का भी किया।
मेरा लिंग पूरी तरह तन चुका था, अब अगर मैंने इसे आजाद न किया तो मेरा अंडरवियर ही फट जाएगा, मैंने सोचा।
मैं उठा और फटाफट अपने कपड़े उतार कर फेंके, कौन सा कपड़ा कहाँ गिरा,
इसकी सुध लेने की फुर्सत मुझे कहाँ थी।
राखी ने फिर अपनी आँखें बंद कर ली थीं। शायद वो मुझे नग्न देखकर शर्मा गई थी।
मैं अपने पैर उसके शरीर के दोनों तरफ करके उसके वक्ष के ऊपर इस तरह
बैठ गया कि मेरा भार उसके शरीर पर न पड़े। मैं अपना लिंग उसके मुँह के पास
ले आया, मैंने कहा-राखी आँखें खोलो।
उसने आँखें खोली और अपने मुँह के ठीक सामने मेरे भीमकाय लिंग को देखकर डर के मारे फिर से बंद कर लीं।
मैंने कहा- राखी, इसे चूसो। जैसे मैं तुम्हारी चूतचूसता हूँ वैसे ही।
उसने आँखें खोलीं और बोली- नहीं, मुझे घिन आती है।
मैंने कहा- घिन तो मुझे भी आती है तुम्हारी चूत चूसते हुए, मगर
तुमको मजा देने के लिए चूसता हूँ न। उसी तरह तुम भी मुझे मजा देने के लिए
चूसो।
कहकर मैं अपना लिंग उसके मुँह के पास ले आया। उसने कुछ नहीं किया तो
मैंने खुद ही अपना लिंग उसके होंठों से सटा दिया। फिर भी उसने कुछ नहीं
किया तो मैंने अपना लिंग उसके होंठों पर रगड़ना शुरू किया।
अचानक उसने मेरा लिंग अपने हाथों में पकड़ लिया और बोली- आपका लिंग तो बहुत बड़ा है।
मैं चौंक गया, मैंने पूछा, "तुम्हें कैसे पता? तुमने तो आजतक सिर्फ़ मेरा ही लिंग देखा है।
उसने फिर अपनी आँखें बंद कर लीं और शर्म से उसके गाल लाल हो गए।
मैंने कहा- बता राखी की बच्ची, तुझे कैसे पता कि मेरा लिंग बहुत बड़ा है? वो बोली- छात्रावास में कंप्यूटर विज्ञान की एक लड़की के पास
कंप्यूटर है। छात्रावास में हमारी सीनियर्स ने रैगिंग के दौरान हमें उस
कंप्यूटर पर ब्लू फिल्म दिखाई थी। उसके बाद मैंने कई बार अपनी सहेलियों के
साथ उस कंप्यूटर पर ब्लू फ़िल्म देखी है लेकिन जितना बड़ा आपका लिंग है इतना
बड़ा उन फिल्मों में किसी का भी लिंग नहीं था।
मैंने कहा- मैं इतना बड़ा हो गया हूँ और आज तक मैंने सिर्फ़ मस्तराम
की कहानियाँ ही पढ़ी थीं और तूने फिल्में भी देख लीं। विज्ञान संकाय की
लड़कियाँ छात्रावास में रहकर वाकई बर्बाद हो जाती हैं। लेकिन उन फ़िल्मों में
तो लिंग चूसते हुए भी दिखाते होंगे। तो तू मेरा लिंग क्यों नहीं चूस रही
है?
वो बोली- मुझे वो दृश्य बहुत गंदे लगते हैं। जब ऐसे दृश्य फ़िल्मों में आते हैं तो मैं अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लेती हूँ।
'यह लड़की नहीं चूसने वाली, लेकिन एक दिन मैंने अपना ये भीमकाय लिंग इसके गले तक न उतारा तो मेरा भी नाम नहीं।'
यह सोच फिर मैं नीचे आया और उसके जींस का एकमात्र बटन खोलकर जिप
नीचे सरकाई। उसने काले रंग की पैंटी पहनी हुई थी। जींस इतनी मस्त और पैंटी
गाँव की लड़कियों वाली।
बहरहाल मैंने उसका जींस पकड़कर नीचे खींचना शुरू किया। जींस बेहद
टाइट थी। नीचे खींचने में मुझे पसीना आ गया। लड़कियाँ इतनी टाइट जींस पहनती
ही क्यूँ हैं?
मैंने राखी से कहा- जल्दी से अपनी जींस उतार।
वो उठी और उसने एक ही झटके में अपनी जींस उतार कर रख दी। इसे कोई
जादू आता है क्या? जिस काम में मुझे इतनी दिक्कत हो रही थी इसने एक झटके
में कर दिया।
अब बात मेरे बर्दाश्त के बाहर थी। मैंने उसकी पैंटी पकड़कर खींची तो वो चर्र की आवाज़ के साथ फट गई। गाँव की लड़कियों की पतली सी पैंटी।
उसने कहा- मेरी पैंटी फाड़ दी आपने, अब मैं क्या पहनूँगी?
मैं बोला- चुप रह, मैं दस खरीद दूँगा। चार रूपए की पैंटी के लिए चार करोड़ के आनन्द में विघ्न डाल रही है।
राखी समझ गई कि अब मै खुद पर से नियंत्रण खो चुका हूँ। वो और कुछ
बोलती इससे पहले ही मैंने उसकी चूत को मुँह में भरकर चूसना और बीच बीच में
दाँतों से हल्के से काटना शुरू कर दिया। उसकी कमर मचलने लगी।
मैं पागलों की तरह उसकी योनि चूस रहा था। आज मुझको योनि की गंध
दुनिया के बेहतरीन इत्र से भी अच्छी लग रही थी और योनि का हल्का नमकीन,
हल्का कसैला और हल्का खट्टा स्वाद दुनिया के सबसे स्वादिष्ट पकवान से भी
लजीज लग रहा था। मैंने अपनी जीभ उसकी योनि के अंदर जितना घुस सकती थी घुसेड़
दी। उसने अपनी कमर ऊपर उठा दी ताकि मैं अपनी जीभ और अंदर घुसेड़ सकूँ। मैं
अपनी जीभ उसकी चूत में तेजी से अंदर बाहर करने लगा। उसकी कमर हिलने लगी।
मैंने जीभ बाहर निकाली और फिर से उसकी चूत मुँह में लेकर चूसने लगा।उसकी चूत में स्थित मटर के फूल के बीच में एक मटर के दाने जैसी छोटी संरचना थी।
जैसे ही मेरी जीभ उससे टकराती उसके मुँह से सिसकारी निकलने लगती। मैं समझ
गया कि इस मटर के दाने को चुसवाने में इसे ज्यादा मजा आ रहा है। मैंने अपना
सारा प्रयास उस मटर के दाने को अपनी जीभ से चाटने में लगा दिया। जितना
तेजी से मुझसे हो सकता था मैं उस दाने को चूस रहा था।राखी के मुँह से
निकली सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं।
थोड़ी देर बाद उसने कसकर मेरे बाल अपनी हथेलियों में पकड़ लिए, धीरे
धीरे उसके हाथों ने मेरे बालों को खींचना शुरू किया। मैं तेजी से चूस रहा
था और उसकी हथेलियों का खिंचाव मेरे बालों पर बढ़ता जा रहा था।
अचानक उसकी कमर बुरी तरह उछलने लगी और वो मुझे दूर धकेलने लगी लेकिन मैंने चूसना नहीं छोड़ा।
कुछ क्षणों बाद उसने कहा- बस, भैया बस ! अब बस करो, प्लीज।
और वो निढाल पड़ गई।
आभा को चरम आनंद की प्राप्ति हो चुकी थी, अब मेरी बारी थी। मैं
बिना देरी किए उसके ऊपर आ गया। उसकी चूत चूसने से काफी गीली हो चुकी थी।
मैंने लिंग मुंड को तीन-चार बार उसकी चूत से रगड़कर गीला किया और बेताबी
में एक जोर का धक्का दिया। मेरा लिंगमुंड राखी की चूत में प्रविष्ट हुआ
और उसके मुँह से घुटी घुटी सी चीख निकली। उसने मुझे अपने ऊपर से धकेलने की
कोशिश की लेकिन मुझे धकेलना उसके बस की बात कहाँ थी। वो दो तीन बार तड़पी
फिर ढीली पड़ गई।
मैं उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगा। कुछ क्षणों बाद
मैंने फिर एक धक्का मारा तो उसने अपने होंठ मेरे होंठों से छुड़ा लिए और
बोली- आज फिर दर्द हो रहा है।
मैंने पूछा- पिछली बार से कम या पिछली बार से ज्यादा?
वो बोली- नहीं, पिछली बार तो बहुत ज्यादा दर्द हुआ था।
मैंने कहा- तो सब्र कर, जैसे पिछली बार किया था थोड़ी देर में दर्द गायब हो जाएगा।
इस बार मैंने आहिस्ता आहिस्ता अपने लिंग पर दबाव बढ़ाया। लिंगमुंड
उसकी गहराइयों में उतरने लगा। उसे थोड़ी दिक्कत तो हो रही थी लेकिन आनन्द
पाने के लिए कष्ट तो सहना ही पड़ता है। लिंग पूरा उसकी गहराई में उतर जाने
के बाद मैंने आहिस्ता आहिस्ता अपनी कमर हिलानी शुरू की। वो मेरा साथ नहीं
दे रही थी पर इस वक्त मुझे परवाह कहाँ थी। मैं धीरे धीरे अपनी गति बढ़ाने
लगा। उसकी जाँघों से मेरी जाँघें टकराने लगीं और कमरे में धप धप की आवाज
गूँजने लगी। उसके होंठ मेरे होंठों में थे और उसके मांसल उरोज मेरी छाती से
दबकर चिपक गए थे।
मैं और जोर से धक्के मारने लगा। थोड़ी देर बाद वो भी मेरे धक्कों के
साथ साथ कमर हिलाने लगी। मैंने उसकी दोनों टाँगें अपने नितंबों के ऊपर चढ़ा
लीं और अपने हाथ उसके नितंबों के नीचे ले गया। अब मैं और गहराई में पहुँच
रहा था। अब वो अपनी जीभ से मेरी जीभ चूस रही थी। संभोग का नशा उसके भी सर
चढ़कर बोल रहा था।
एक बार फिर हम दोनों अपने होश खो बैठे थे।
मेरे मुँह से फिर गंदे शब्द निकल रहे थे- राखी, जानेमन, कैसा लग
रहा है मेरी जान? मजा आ रहा है रानी? देख तेरी छोटी सी चूत का मेरे मोटे
लंड ने क्या हाल कर दिया है। मैंने तेरी फाड़ डाली है राखी। अब मैं जब
चाहूँगा, जहाँ चाहूँगा, जैसे चाहूँगा तुझे चोदूँगा मेरी जान। ओ राखी मेरी
जानेमन। ये ले मेरी जान। ले ले मेरा मोटा लौंडा। आज मैं अपने बीज से तेरी
सारी आग बुझा दूँगा मेरी जान।
राखी के मुँह से भी गंदे गंदे शब्द निकल रहे थे। फच फच की आवाज के साथ गंदे शब्द मिलकर अजीब सा संगीत रच रहे थे।
अचानक राखी मुझसे कसकर लिपट गई। उसका बदन काँपने लगा। मैं समझ गया
कि यह दोबारा चरम आनंद प्राप्त कर रही है। मैं अपनी पूरी ताकत से धक्के
मारने लगा। मैं अपना सारा वीर्य उसकी चूत में गिराना चाहता था।
अचानक वो बोली- आज अंदर मत गिराइएगा।
मैंने पूछा- क्यों?
वो बोली- पिछली बार सुरक्षित समय था। इस बार अंदर गिराएँगें तो मैं गर्भवती हो जाऊँगी। मेरा मासिक धर्म हुए दस दिन बीत चुके हैं।
मेरे दिमाग को एक झटका सा लगा। यह जीव विज्ञान की छात्रा है निश्चित
ही सही कह रही होगी। इतना बड़ा रिस्क लेना ठीक नहीं है। जीव विज्ञान में
मेरा सामान्य ज्ञान वाकई कमजोर था।
मैंने अपना लिंग बाहर निकाल लिया। उसकी टाँगों को पूरी तरह फैला
दिया और उनके बीच में बैठकर हस्तमैथुन करने लगा। उसकी योनि के बाल न ज्यादा
छोटे थे न ज्यादा बड़े। मैं एक हाथ से उसकी योनि सहलाने लगा और एक हाथ से
हस्तमैथुन करने लगा। दो मिनट बाद मेरे लिंग से वीर्य की धार निकलर उसके पेट
और स्तनों पर गिरने लगी। कुछ बूँदें उसके चेहरे पर भी गिरीं। उसने अजीब सा
मुँह बनाया।
मैंने उसकी फटी पैंटी उठाई और उसके शरीर से अपना वीर्य पोंछकर साफ किया। फिर मैंने उसे कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया।
मेरा मुँह खिड़की की तरफ था, अचानक मैंने देखा कि पर्दे के एक किनारे
किसी की छाया पड़ रही है। पर्दे और खिड़की की दीवार के बीच थोड़ी सी जगह थी
और बाहर जो कोई भी था वो यकीनन यह सब देख रहा था।
मेरे तो होश उड़ गए, अब क्या होगा? कौन हो सकता है बाहर?
आज रविवार है और हो सकता है कि नेहा मुझसे हिंदी पढ़ने आई हो !
हे कामदेव, वासना मिटाने के चक्कर में इतनी महत्वपूर्ण बात मेरे ध्यान से कैसे उतर गई।
मैं फटाफट उठा और जल्दी से कुर्ता और पैजामा डालकर बाहर आया। नेहा
जल्दी जल्दी सीढ़ियाँ उतर रही थी। संभवतः उसने भी मुझे अपनी ओर देखते देख
लिया होगा।
हे कामदेव, अगर इसने किसी से कुछ कह दिया तो मैं और राखी कहीं के नहीं रहेंगे।
मेरे मुँह से अपने आप निकल गया- नेहा, सुनो !
वो खड़ी हो गई, उसने मुड़कर देखा, उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था।
मैंने कहा- आओ, तुम्हें अपनी बहन से मिलवाता हूँ।
वो वहीं खड़ी रही। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा, मैं सभी देवताओं से मनाने लगा कि आज बचा लो, आज के बाद ऐसा काम कभी नहीं करूँगा।
फिर उसने ऊपर वाली सीढ़ी पर कदम रखा। मैंने चैन की साँस ली, कामदेव एवं अन्य देवों को धन्यवाद दिया।
वो ऊपर आई। हम कमरे में आए। राखी बाथरूम में थी। उसकी पैंटी एक
कोने में पड़ी हुई थी। मेरे अंडरवीयर और बनियान बेड के नीचे पड़े हुए थे।
राखी बाहर निकली। उसने कपड़े पहन लिए थे अपने बाल जूड़े की शक्ल में बाँध लिए थे।
मैंने दोनों का परिचय करवाया। उसके बाद मैंने नेहा को मिठाई दी।
फिर नेहा के हाथ से किताब लेकर मैंने उसे "कामायनी" का वो अंश जो
उसकी पुस्तक में थे दिखाया और बोला- इसे अच्छी तरह पढ़ लो। अगर इसकी भाषा
तुम्हें कठिन लगे तो चिंचित मत होना। तुम इसे दो तीन बार गा गाकर पढ़ लो।
मैं जरा आभा को इसके छात्रावास छोड़ कर आता हूँ। मैं वापस आकर तुम्हें इस
महाकाव्य के बारे में विस्तार से बताऊँगा।"
राखी को साथ लेकर मैं निकल पड़ा।
रास्ते में उसने मुझसे पूछा- आप को एकदम सही समय पर कैसे ख्याल आया कि यह ऊपर आने वाली है?
अब मैं राखी को कैसे बताता कि नेहा ने सबकुछ देख लिया है। राखी
बेकार में डर जाती। मैंने बाजार से उसके लिए नई पैंटीज लीं और उसे उसके
छात्रावास छोड़ कर वापस लौटा।
रास्ते में मुझे वो प्रसिद्ध कहावत याद आई। इश्क और मुश्क छुपाए
नहीं छुपते। अब क्या होगा? क्या नेहा सबको बता देगी कि मैं और राखी संभोग
कर रहे थे?
कहीं नेहा मुझे ब्लैकमेल तो नहीं करने लगेगी?
हे कामदेव, इस बार बचा ले।
राखी को वापस उसके छात्रावास छोड़ने के बाद मैं सभी देवों से इस बार
बचा लेने की प्रार्थना करते हुए अपने कमरे पर लौटा
नेहा मेरे कमरे में फ़ोल्डिंग बेड पर पैर लटकाकर बैठी हुई थी और
"कामायनी" का सस्वर पाठ कर रही थी। मेरी उससे कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ी।
जो कुछ उसने देखा था उसके बाद मेरी उससे निगाह मिलाने की भी हिम्मत नहीं
हो रही थी। मैंने उससे पुस्तक ले ली और मनु और श्रद्धा की कहानी उसे सुनाने
लगा। कहानी खत्म होने के बाद मैंने उसे कविता का अर्थ समझाना शुरू किया।
बीच में एक पंक्ति आई- “और एक फिर व्याकुल चुम्बन रक्त खौलता जिससे, शीतल प्राण धधक उठते हैं तृषा तृप्ति के मिष से।”
पढ़ने के बाद मैंने उसकी तरफ देखा। पंक्ति में चुम्बन शब्द आने से उसने थोड़ा बहुत अंदाजा तो लगा ही लिया था कि इसका अर्थ क्या होगा।
मैंने डरते डरते कहा, “इन पंक्तियों को छोड़ देते हैं।”
वो बोली, “क्यों।”
मैंने कहा, “इनका अर्थ अश्लील है।”
वो बोली, “और आप जो कर रहे थे वो अश्लील नहीं था क्या?”
मैंने अनजान बनते हुए पूछा, “मैं क्या कर रहा था?”
वो बोली, “मैं काफ़ी देर से खिड़की के पास खड़ी थी और आपको और राखी
को चोदाई करते देख रही थी। आपको शर्म नहीं आती ऐसी घटिया हरकत करते हुए और
वो भी अपनी बहन के साथ।”
मैंने शर्म से सर झुका लिया और धीमी आवाज़ में बोला, “मुझे माफ़ कर दो
नेहा मैं बहक गया था। आज के बाद कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा। प्लीज मुझे माफ़
कर दो।”
उसने कहा, “कब से ये सब कर रहे हैं आप दोनों।”
मैंने कहा, “बस ये दूसरी बार है और इसके बाद ऐसा कभी नहीं होगा।
प्लीज किसी से कुछ मत कहना इसके बारे में, वरना मैं और आभा दोनों बर्बाद
हो जाएँगें।”
उसने कहा, “चलिए इस बार तो मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी मगर अब कभी अगर आप राखी को यहाँ लाए तो मैं पापा को सब-कुछ बता दूँगी।”
मैंने कहा, “थैंक्यू बेबी, आज के बाद मैं कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा।”
मेरी जान में जान आई। मैंने कामदेव को धन्यवाद दिया। एक बड़ा संकट टल गया था।
मैंने वो दो पंक्तियाँ छोड़ दीं और नेहा को आगे का अर्थ समझाने लगा। एक घंटे बाद वो चली गई।
अगले रविवार को नेहा का जन्मदिन था। उसका मुँह बंद रहे इसलिए बेहतर
था कि मैं उसे कोई अच्छा सा तोहफा दे देता। मैं उसके लिए अच्छी सी घड़ी खरीद
कर लया।
अपने जन्मदिन के अगले ही दिन वो विद्यालय से वापस आते ही स्कर्ट और
शर्ट पहने हुए ही छत पर मेरे कमरे में आई और बोली, “थैंक्यू, भैय्या।”
मैं बोला, “यू आर वेलकम, बेबी।”
वो सचमुच बहुत खुश थी। मैंने उसको अठारह साल की हो जाने पर दुबारा
बधाई दी और कहा कि अब तुम वोट दे सकती हो और अपनी मर्जी से जिससे चाहो शादी
भी कर सकती हो।
वो मुस्कुराने लगी। फिर मैंने उससे पूछा कि विद्यालय में आज क्या
पढ़ाया गया। वो बताने लगी। थोड़ी देर हम दोनों में इधर उधर की बातें होती
रहीं फिर वो वापस चली गई।
अगले रविवार वो मेरे पास आई तो उसने जींस और टॉप पहना हुआ था। मैंने
उसको इससे पहले भी बाजार वगैरह में जींस और टॉप में देखा था लेकिन दूर दूर
से और हमेशा एक बच्ची की नज़र से। आज तो वो कयामत लग रही थी। बिल्कुल कसी
हुई टॉप में उसके बड़े बड़े उरोज बाहर निकल आने को आतुर लग रहे थे। इसके
सामने राखी के उरोज तो कुछ भी नहीं हैं, मैंने सोचा।
दो सप्ताह से मैं हस्तमैथुन करके काम चला रहा था। लेकिन योनि का रस
जिसने एक बार छक कर पी लिया उसका मन हस्तमैथुन से कहाँ भरता है।वो मेरे
सामने से गुजरकर फ़ोल्डिंग बेड पर बैठने के लिए गई तो मैंने पीछे से उसके
नितम्बों का जायजा लिया।
"हे कामदेव ! इतने बड़े नितम्ब।"
"कहाँ छुपाकर रक्खे थे इस लड़की ने?"
सचमुच भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है।
"हे कामदेव, अपने पुष्पबाण वापस तरकश में डाल लो, वरना मैं न जाने क्या कर बैठूँ।"
पर कामदेव जब एक बार पुष्पबाण चलाना शुरू कर देते हैं तो फिर जान
निकाले बिना कहाँ मानते हैं। न जाने कहाँ से मुझमें इतनी हिम्मत आ गई कि
मैंने उससे पूछा, “अपने ब्वायफ्रेंड से मिलकर आ रही हो क्या।”
वो बोली, “नहीं अपने ब्वॉय फ़्रेंड से मिलने जा रही हूँ मगर आपको
इससे क्या? आप तो मुझे हिंदी पढ़ाइए और अपनी बहन चोदेये कीजिए।”
मेरा मुँह लटक गया। मुझे उससे ऐसे कटाक्ष की आशा नहीं थी।
उसने मेरी तरफ देखा और मेरा लटका हुआ मुँह देखकर बोली, “मैं तो मजाक कर रही थी। आप तो बुरा मान गए।”
मैंने कहा, “मैंने तुमसे बताया था न कि मुझसे गलती हो गई। इसके लिए
मैं शर्मिन्दा हूँ। फिर भी तुम ऐसी बात कह रही हो। उस बात को भूल जाओ और
आगे से कभी ऐसा मजाक मत करना नहीं तो मैं कहीं और कमरा ले लूँगा।”
अचानक उसे न जाने क्या हुआ कि वो आकर मुझसे लिपट गई और रोने लगी।
मैं भौंचक्का रह गया।
वो मुझसे लिपटकर रो रही थी, उसके मांसल उरोज मेरे सीने से दबे हुए थे और वो रोए जा रही थी।
कुछ देर मैंने उसे रोने दिया, फिर मैंने उससे पूछा, “क्या हुआ बेबी?”
वो बोली, “आई
लव यू, भैय्या। आई लव यू। आप नहीं जानते आप मुझे कितने
अच्छे लगते हैं। मैं कब से आप से प्यार करती हूँ इसलिए उस दिन जब मैंने
आपको और आभा को चोदेये करते हुए देखा तो मैं पागल हो गई। यदि आप मुझे न
रोकते तो मैं सचमुच पापा को बता देती और जब मुझे यह पता चला कि वो आपकी
बहन है तो मुझे आपसे नफ़रत होने लगी। पर जब आपने बताया कि आप अपने किए
पर शर्मिंदा हैं और आप फिर कभी ऐसा नहीं करेंगे तो मैंने दिल से आपको माफ़
कर दिया। अब मैं कभी उस घटना का जिक्र नहीं करूँगी। प्लीज मुझे माफ़ कर
दीजिए और अब कभी यह घर छोड़कर जाने की बात मत कीजिएगा।”
मैं जानता था कि यह उम्र होती ही ऐसी है जिसमें लड़की आकर्षण और
प्यार में अंतर नहीं कर पाती। मेरे जैसे स्मार्ट लड़के पर उसका आकर्षित होना
कोई बड़ी बात नहीं थी। लेकिन वो आकर्षण को प्यार समझ बैठी थी। ये कमसिन और
नादान उम्र की लड़कियाँ भी न, दूध के दाँत भी अभी ठीक से नहीं टूटे कि
दुनिया की सबसे जटिल भावना “प्रेम” को समझ पाने और प्यार होने का दावा करने
लगती हैं।
मैंने कहा, “भैय्या भी कहती हो और आई लव यू भी कहती हो। मैं एक बार गलती कर चुका हूँ दुबारा नहीं करना चाहता।”
अब उसका रोना बंद हुआ और वो बोली, “आई लव यू, सर !”
मैं बोला, “अब ठीक है, लाओ किताब दो और उधर बैठो।”
वो बाथरूम से अपना चेहरा धोकर आई। मैंने उसे ऊपर से नीचे तक निहारा।
मेरी निगाह उसके मांसल उरोजों पर जाकर रुकी। उसने मेरी निगाह का पीछा किया
तो शर्म से उसके गाल लाल हो गए।
मैंने अपनी बाहें फैला दीं। वो सर झुकाकर धीरे धीरे आई और मेरी
बाहों में सिमट गई। मैंने कसकर उसे खुद से भींच लिया। उसके बड़े बड़े उभार
मेरे सीने में चुभकर अजीब सी गुदगुदी कर रहे थे। मैंने उसके बालों में
उँगलियाँ फेरनी शुरू कीं। फिर उसकी पीठ पर हाथ फिराना शुरू किया।
वो मुझसे लिपटी हुई थी। मुझे पता था कि एक बार सचमुच का सेक्स देखने के बाद अब तो इसका मन करता होगा कि इसके साथ भी वही सब कुछ हो।
मैं डरते डरते अपना हाथ उसके नितम्बों पर ले गया।
"हे कामदेव इसके नितम्ब आभा के नितम्बों से तिगुने हैं।"
उसने कोई विरोध नहीं किया। मैं उसके नितम्बों को धीरे धीरे सहलाने
लगा। फिर मैंने उसके नितम्ब को पकड़कर उसे और करीब खींच लिया। उसकी जाँघें
मेरी जाँघों से सट गईं। उसका गदराया हुआ बदन बाहों में भरने का आनंद ही अलग
था।
उससे चिपके चिपके ही मैं उसे बेड के पास ले गया और उसे बेड पर
लिटाने लगा। वो मुझसे अलग होने को तैयार ही नहीं थी। मैंने उसके गालों पर
फिर होंठों पर चुम्बन लिया। उसके गले पर चुम्बनों की बरसात कर दी। उसकी
टीशर्ट के खुले हुए हिस्से पर चुम्बन लिये। उसके बाद मैंने उससे कहा, “लेट
जाओ नेहा। मैं तुम्हारे साथ जो कुछ करना चाहता हूँ वो खड़े खड़े नहीं हो
सकता।”
वो मुझसे अलग हुई। मैंने उसे बेड पर लिटा दिया। वो आधी बेड पर थी
लेकिन उसके पैर बेड के नीचे लटके हुए थे। मैं उसके बगल बैठ गया। उसकी
साँसें पहले की अपेक्षा तेज हो गई थीं। मैंने अपना एक हाथ उसके माँसल उभार
पर रखा।
वो सिहर उठी।
मैं धीरे धीरे उसके उभारों को सहलाने लगा।
पहली बार संभोग के लिए तैयार लड़कियों का कोई भरोसा नहीं होता पता
नहीं कौन सी बात पर नाराज हो जाएँ और आगे बढ़ने से इंकार कर दें। इसका मूल
कारण उनका डर और संभोग के संबंध में उनकी अज्ञानता होती है। इसलिए पहली बार
जब भी किसी लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाएँ धीरे धीरे और बिना किसी
जबर्दस्ती के बनाएँ। लड़की अगर इंकार करे तो आगे न बढ़ें वरना जबरदस्ती आप
इधर उधर हाथ तो लगा लेंगे मगर साथ ही भविष्य में संभोग की सारी संभावनाएँ
खत्म कर लेंगे।
मैंने अपना दूसरा हाथ उसके दूसरे उरोज पर रखा। उसकी साँसें और तेज हो गईं।
मैंने उसके उरोजों को सहलाना शुरू किया। उरोज क्या थे दो रुई के
गोले थे। राखी के उरोज तो इसके सामने कुछ भी नहीं थे। मेरा लिंग पजामें
में तंबू बना रहा था। मैंने उरोजों को जोर जोर से मसलना शुरू किया तो उसके
मुँह से कराह निकली।
अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैंने उसकी टीशर्ट ऊपर उठाई, उसने मेरे हाथ पकड़ लिए और बोली, “कोई आ जाएगा।”
मैं झुका और उसके पेट के खुले भाग को चूमने लगा। वो गुदगुदी और आनंद
के मिले जुले प्रभाव से सिसकने लगी। अब मैं दो काम एक साथ कर रहा था उसके
पेट पर चूम रहा था और साथ ही साथ उसकी टीशर्ट उठा रहा था। उसके हाथों की
विरोध करने की ताकत खत्म होती जा रही थी।
कुछ पलों बाद मैं उसकी टीशर्ट उठा कर उसके गले तक ले आया और उसकी
सफ़ेद ब्रा के आसपास के नग्न स्थानों को चूमने लगा। मैंने उसके ब्रा का
दायाँ कप हटाया। उसके दूधिया उभार पर छोटा सा चुचूक मेरा इंतजार कर रहा था।
मैंने उसपर अपना जलता हुआ होंठ रखा। नेहा का पूरा बदन सिहर उठा। मैंने चूचुक को अपनी जीभ से चाटना शुरू
किया। वो मचलने लगी। मैंने चूचुक अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा। नेहा
की हालत खराब होने लगी। चूसते चूसते ही मैंने उसकी ब्रा का बायाँ कप हटाया
और उसके बाएँ उभार को कस कर मसलने लगा। कितने बड़े बड़े उरोज थे मेरी पूरी
हथेली में उसका आधा उरोज भी नहीं आ रहा था।
फिर मैंने उसको बैठने को कहा और उसकी टीशर्ट बाहर खींचने लगा। उसने
कोई विरोध नहीं किया और मैंने पीछे से हुक खोलकर उसकी ब्रा भी उतार दी।
उसके उभार हल्का सा नीचे हो गए। बड़े उभारों के साथ यही समस्या होती है बहुत
कम उम्र में ही ढीले होना शुरू हो जाते हैं इसलिए बड़े उभारों का असली आनंद
तो अठारह की उम्र में ही मिल पाता है।
राखी की जींस उतार कर मैं देख चुका था कि लड़कियों की जींस उतारना
कितना मुश्किल काम है। मैंने उसके गले पर चूमते चूमते उससे कहा, “नेहा अपनी
जींस उतार दो।”
वो बोली, “नहीं सर प्लीज, ये सब शादी के बाद।”
हद हो गई, इन अठारह साल की लड़कियों का चुम्बन भी ले लो तो शादी और
बच्चों के सपने देखने लगती हैं। इससे अच्छी तो राखी थी कम से कम उसे
मालूम तो था कि हम दोनों की शादी नहीं हो सकती।
मैंने कहा, “मैं सेक्स नहीं करूँगा सिर्फ़ तुम्हारी जाँघों और चूत
पर चुम्बन लूँगा। मैं और कुछ करूँ तो तुम मुझे तुरंत रोक देना। प्लीज नेहा,
जल्दी करो और मत तड़पाओ नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगा। तुम तो जानती हो पिछले
पंद्रह दिनों से मैं राखी के लिए तड़प रहा हूँ अगर तुमने न देखा होता तो
मैं उसे हर रविवार को बुला लेता। अब अगर तुम चाहती हो कि मैं राखी से न
मिलूँ तो प्लीज अपनी जींस उतार दो और मुझे अपनी जाँघों और चूत को चूमने
दो।”
मेरी बातों को सुनकर और मेरी खराब हालत को देखकर वो समझ गई कि मैं
बिना उसको नग्नावस्था में देखे मानने वाला नहीं हूँ। उसने अपनी जींस उतार
दी।
'उफ़ ये दूध जैसी गोरी गोरी और गदराई हुई जाँघें !'
इनके सामने राखी की हल्की साँवली जाँघें तो कुछ भी नहीं हैं।
हे कामदेव आज के बाद अगर नेहा मुझे यों ही मिलती रही तो मैं राखी के बारे में सोचूँगा भी नहीं।
मैंने उसे बेड पर अच्छी तरह से लिटा दिया। अब उसके बदन पर सिर्फ़
जॉकी की पैंटी थी जो उसकी गदराई हुई जाँघों पर कयामत लग रही थी और पैंटी के
ठीक बीच में उसकी चूत फूल कर कुप्पा हो गई थी।
हे कामदेव इतनी फूली हुई चूत ! धन्यवाद, बहुत बहुत धन्यवाद।
मैंने उसकी जाँघों को चूमना शुरू किया। गोरी, चिकनी, बेदाग अनछुई जाँघें मेरे हर चुम्बन पर सिहर उठतीं थीं।
मैं चुम्बन लेते लेते धीरे धीरे ऊपर आया। उसकी चूत को पैंटी के ऊपर
से मैंने चूमा तो उसके पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गई। मैंने उसकी पैंटी के
इलास्टिक में अपनी उँगलियाँ फँसाईं तो उसने मेरे हाथ पकड़ लिए।
वो बोली, “आप तो कह रहे थे कि सिर्फ़ चूमेंगे।”
मैंने कहा, “ठीक कह रहा था। लेकिन मुझे तुम्हारी नग्न चूत को चूमना है।”
उसने मेरे हाथ छोड़ दिए। मैंने उसकी पैंटी नीचे खींची। उसकी चूत पर
बाल ही नहीं थे। मैं दंग रह गया। हे कामदेव ऐसी योनि भी होती है क्या जिस
पर बाल ही न हों।
मैंने उसे चूम लिया। वो पूरी तरह सिहर उठी। मैंने उसकी चूत के
बीचोबीच बनी पतली सी दरार पर अपनी जीभ रखी। उसकी टाँगें काँप उठीं। अब
मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उसकी योनि पर अपनी जीभ फिराना शुरू कर दिया।
उसका जिस्म काँपना शुरू हो गया। उसकी योनि मेरी लार और उसके योनिरस से गीली
होने लगी।
मैंने उसकी टाँगें फैला दीं। उसने कोई विरोध नहीं किया अब मेरी जीभ
थोड़ा थोड़ा उसकी दरार में भी उतर रही थी। बिना बालों वाली कुँवारी चूत को
चूसने से बड़ा सुख दुनिया में और कहीं नहीं। मैंने उसकी टाँगे और फैला दीं
फिर मैं उसकी जाँघों के बीच इस तरह लेट गया कि मेरा मुँह उसकी चूत पर रहे।
इस बार मैंने अपनी उँगलियों से उसकी चूत की दरार फैला दी। अंदर
छोटा सा छेद दिखाई पड़ रहा था। मैं अपनी जीभ उसकी दरार में घुसाने की कोशिश
करने लगा। नेहा में अब विरोध करने की ताकत नहीं बची थी। वो अब पूरी तरह
मेरी थी।
मेरी जीभ थोड़ा सा अंदर घुसी तो उसने अपने नितम्ब ऊपर उठा दिये।
मैंने जीभ और अंदर डालने की कोशिश की मगर थोड़ा और अंदर जाने के बाद जीभ पर चूत का कसाव बहुत ज्यादा हो गया। मैं समझ गया कि और अंदर जीभ डालने के लिए
पहले इस छेद की चौड़ाई बढ़ानी होगी।
मैंने जीभ छेद से निकालकर उसकी योनि की भगनासा को चाटने लगा और वो
अपने नितम्ब उछालने लगी। उसकी भगनासा भी फूली हुई थी। चूत को चूसते चूसते
मैंने अपने हाथ नीचे करके अपना पजामा और अंडरवियर नीचे सरका दिए। फिर मैं
उसके ऊपर सरक आया। मैंने उसके होंठ चूमने चाहे तो उसने अपना मुँह घुमा
लिया।
मैंने पूछा, “क्या हुआ नेहा।”
वो बोली, “आपका मुँह गंदा हो गया है।”
हद है यार ये लड़कियाँ भी न एक दिन जिसे गंदा कहकर उसकी तरफ देखना भी
नहीं पसंद करतीं बाद में उसी को मुँह में लेकर लालीपॉप की तरह चूसती हैं।
हे कामदेव कहाँ से मिट्टी लाकर तू बनाता है लड़कियाँ।
मैं उसके गालों को चूमने लगा। चूमते चूमते मैंने अपनी कमर और ऊपर
उठाई। अब मेरा लिंग नेहा की मुलायम चूत पर था। उफ इसकी चूत कितनी
गद्देदार है। मैं अपनी कमर हिलाकर अपना लिंग उसकी चूत पर रगड़ने लगा। फिर
मैंने अपने हाथ से लिंग को पकड़कर चूत की गीली दरारों से रगड़ रगड़ कर गीला
किया। जब मुझे लगा कि लिंग में पर्याप्त गीलापन आ गया है तो मैंने उसकी चूत के छेद पर अपना लिंग रखा और हल्का सा दबाव बढ़ाया। जल्द ही मेरा लिंग
उसकी दरार से गुजरते हुए उसकी गुफा के द्वार पर जाकर अटका। मैं जानता था कि
धीरे धीरे डालूँगा तो ये दर्द के मारे मुझे अपने ऊपर से हटा देगी। इसलिए
मैंने अपनी पूरी ताकत लगाकर एक जोरदार झटका मारा।
लिंगमुंड आधा ही अंदर गया लेकिन नेहा किसी जिबह होती बकरी की तरह
चिल्लाई। वो आभा की तरह दुबली पतली तो थी नहीं। मोटी भी नहीं थी मगर
हट्टी कट्टी थी। उसने मुझे अपने ऊपर से धकेल दिया। उसकी आँखों से आँसू निकल
रहे थे वो रोए जा रही थी। मैंने उसकी चूत की तरफ देखा। वहाँ से खून रिसकर
कर चादर पर गिर रहा था। मैंने इतना बड़ा लिंग देने के लिए कामदेव को कोसा।
मैंने अपना तौलिया उठाया और उसकी चूत से खून साफ करने लगा। कुछ
पलों बाद खून का बहना रुक गया तो मैंने उसकी चूत को फैलाना चाहा। वो फिर
दर्द से सिसक उठी। मैं समझ गया कि आगे कुछ करना ठीक नहीं होगा। मगर राखी
की चूत में से तो इतना खून नहीं निकला था। ये क्या माज़रा है। मैंने उसे
अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठों और गालों को चूमने लगा।
मैंने उससे पूछा, “क्या हुआ, नेहा?”
वो बोली, “बहुत दर्द हो रहा है। लगता है मैं मर जाऊँगी।”
मैंने कहा, “आखिर शादी के बाद तो तुम्हें ये सब करना ही होगा। शादी के बाद कैसे करोगी।”
वो बोली, “पता नहीं। लेकिन मैं अब कभी सेक्स नहीं करूँगी। बहुत दर्द हो रहा है।”
मैंने कहा, “तो फिर मैं क्या करूँ। मेरा क्या होगा नेहा।”
वो बोली, “आप राखी के साथ ही कर लो। मैं नहीं कर सकती।”
मैंने कहा, “चलो आज नहीं, अगले रविवार को फिर प्रयास करेंगे।”
वो बोली, “नहीं, कभी नहीं।”
मैंने कहा, “तो फिर शादी के बाद क्या करोगी। ऐसा करोगी तो शादी की पहली रात को ही तुम्हारा पति तुम्हें तलाक दे देगा।”
वो बोली, “तो मैं क्या करूँ।”
मैंने कहा, “किसी डॉक्टर को दिखा लो हो सकता है तुम्हारी चूत की मांसपेशियों में कुछ समस्या हो।”
वो बोली, “नहीं, मैं क्या कहूँगी डॉक्टर से कि मैं चूत में लंड
घुसवा रही थी और वो नहीं घुस रहा था आप चेक करके बताइए कि क्या समस्या है।”
इस अवस्था
में भी मैं हँस पड़ा, मैंने कहा, “तो एक काम करता हूँ। राखी तो जान ही चुकी
है कि तुम मुझे और उसको संभोग करते हुए देख चुकी हो,
मैंने झूठ बोला, अब उसके और मेरे बीच में कोई लाज शर्म तो बची नहीं है।
मैं उससे बात करता हूँ। वो जीव विज्ञान की छात्रा है। हो सकता है वो
तुम्हारी इस समस्या का कोई समाधान बता सके। नहीं तो तुम्हारी शादी के बाद
क्या होगा।”
मैंने उसे डराया। अब शायद वो मुझसे शादी का तो क्या शादी करने के बारे में ही अपना ख्याल बदल चुकी थी।
वो बोली, “मेरे बारे में कुछ मत कहिएगा, कह दीजिएगा कि आप की कोई दोस्त है जिसके साथ आप कर रहे थे और यह समस्या आ गई।”
मैंने कहा, “चलो ऐसे ही सही। अच्छा अब एक काम करो अपनी आँखें बंद करो।”
वो बोली, “क्यूँ?”
मैंने कहा, “भरोसा करो और अपनी आँखें बंद करो।”
उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। मेरे दिमाग तेजी से काम कर रहा था।
मुझे अपने लिंग को तो किसी भी तरह से शांत करना ही था। मैंने आलमारी में
रखी शहद की शीशी उठाई उसमें से शहद अपने लंड पर लगाया और उससे बोला, “मुँह
खोलो।”राखी के इंकार करने के बाद मैं नेहा को धोखे में रखकर अपना लंड
चुसवाना चाहता था। मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था।
मैं उसकी छातियों पर इस तरह बैठा कि मेरा भार उस पर न पड़े। उसने
मुँह खोला हुआ था। मैंने कहा, “अगर तुम मुझसे सचमुच प्यार करती हो तो अपनी
आँख नहीं खोलोगी।”
उसने और कसकर अपनी आँखें बंद कर लीं।
मैंने अपना शहद लगा लिंगमुंड उसके मुँह में डाल दिया। मैंने अपने
पैर उसकी बाहों पर रखे हुए थे ताकि वो अपने हाथ से टटोलकर न देख सके कि मैं
उसे क्या चुसवा रहा हूँ।
उसे शहद का स्वाद मिला तो उसने चूसना शुरू कर दिया। मुझे मजा आने
लगा। आज पहली बार लिंग चुसवाने का सुख मिल रहा था। मैंने अपनी कमर हिलाना
शुरू कर दिया अब वो चूस रही थी और मैं अपनी कमर हिला रहा था। अचानक मेरे
शरीर में तनाव आया और मेरे लिंग से वीर्य निकल निकल कर उसके मुँह में गिरना
शुरू हो गया।
उसने आँखें खोलीं और जो उसने देखा उससे उसके होश उड़ गए। उसने अपना
सिर खींचा तो लिंग से निकल रहा वीर्य उसके मुँह पर और उसके मांसल उरोजों पर
गिरने लगा।
उसने पूरा जोर लगाकर मुझे अपने ऊपर से ढकेला और बाथरूम की तरफ भागी।
बाथरूम से उल्टी करने की आवाजें आने लगीं। बहरहाल मेरा काम हो गया था और
नेहा की शुरुआत हो चुकी थी।
अब मुझे राखी और नेहा की मुलाकात करवानी थी ताकि नेहा के मन से लिंग का डर निकाल सकूँ।
मेरा दिमाग आगे की योजना बनाने में व्यस्त हो गया।
पुरुष को यदि कोई स्त्री आसानी से हासिल हो जाए तो वो जल्द ही उससे ऊब
जाता है। जो स्त्री पुरुष को जितना ज्यादा तरसाती है पुरुष उसको हासिल करने
के लिए उतना ही ज्यादा लालायित होता जाता है।
। मैं अगले ही दिन शाम को राखी के छात्रावास पहुँचा। मैंने उस तक संदेशा भिजवाया कि बहुत जरूरी काम
है जल्द से जल्द वो बाहर आ जाए। वो बाहर निकली। उसने सलवार सूट पहन रखा
था।
उसने पूछा, “क्या हुआ भैया, इतने दिनों तक मेरी कोई खोज खबर नहीं ली
आपने और अचानक इतना जरूरी काम आ पड़ा कि दौड़े चले आए? कल सुबह आठ बजे से
मेरी पहली कक्षा है, उसके लिए मेरा कुछ काम बाकी रह गया है, जो कहना हो
जल्दी कहिए।”
मैंने कहा, “तुमसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं जो यहाँ खड़े खड़े नहीं
हो सकतीं। चलो मेरे साथ। मैं कल एकदम सुबह सुबह तुम्हें वापस छोड़ जाऊँगा।”
वो बोली, “तो क्या मैं रात भर आपके साथ रहूँगी।”
मैंने कहा, “हाँ।”
वो मुस्कुराकर बोली, “तो मैं अपने कपड़े ले लूँ और पुस्तक-पुस्तिका भी ले लूँ ताकि मैं अपनी पढ़ाई कर सकूँ।”
मैंने कहा, “हाँ ले लो।”
वो अपने कपड़े और अन्य सामान लेकर बाहर आई। हम कमरे पर आ गए। जैसे ही
मैंने दरवाजा अंदर से बंद किया उसने अपने हाथ में थमा सामान बिस्तर पर
फेंका और पीछे से मुझसे लिपट गई।
मैंने कहा, “यह क्या कर रही हो? तुम्हें तो पढ़ाई करनी है न? हम
दोनों तो बहन भाई ही न। अब तक हमारे बीच जो कुछ
हुआ वो सब मेरी भूल थी। अब आगे से हम दोनों के बीच ऐसा कुछ भी नहीं होगा।”
उसने मुझे छोड़ दिया और अपनी कमर पर दोनों हाथ रखकर खड़ी हो गई और
अजीब से नज़रों से मुझे देखने लगी, उसने कहा, “क्यों कोई और मिल गई है
क्या?”
ये लड़कियाँ संभोग करने के बाद ज्यादा समझदार हो जाती हैं क्या? मैंने कहा, “हाँ।”
उसने पूछा, “कौन?”
मैंने कहा, “वो पड़ोस में जो राधा रहती है ना वो।”
उसने कहा, “ये राधा कौन है? पहले तो आपने कभी उसका जिक्र नहीं किया।”
मैंने कहा, “पहले कभी मौका नहीं लगा।”
उसने कहा, “तो अब मैं क्या करूँ?”
मैंने कहा, “तूम भी अपने लिए कोई पुरुष मित्र ढूँढ लो। हमारे बीच ये सब ठीक नहीं है।”
उसने कहा, “तो मुझे यहाँ क्यों लेकर आए?”
मैंने कहा, “कुछ पूछना है तुमसे इसलिए।”
वो बोली, “क्या पूछना है?”
मैंने कहा, “जब मैंने पहली बार तुम्हारी चूत में अपना लिंग डाला था
तो ज्यादा खून नहीं निकला था और दर्द भी तुम सह गई थी। लेकिन जब मैंने
राधा की चूत में लिंग घुसाने की कोशिश की तो ढेर सारा खून निकला और उसे
इतना दर्द हुआ कि उसने घुसवाने से मना कर दिया। तुम तो जीव विज्ञान की
छात्रा हो बताओ ऐसा क्यूँ हुआ।”
उसने कहा, “तो इसलिए मुझे लेकर आए हैं आप। जाइये नहीं बताऊँगी।”
मैंने कहा, “प्लीज राखी बता दे न यार। प्लीज।”
वो बोली, “एक शर्त है।”
मैंने कहा, “क्या?”
उसने कहा, “आज रात आपको मेरे साथ संभोग करना होगा।”
मैंने कहा, “नहीं मैं नहीं कर सकता।”
उसने कहा, “तो जाइए मैं नहीं बताती।”
यह लड़की भी न। चलो झूठ मूठ का वादा कर देता हूँ बाद में तोड़ दूँगा
तो यह क्या कर लेगी, मैंने कहा, “अच्छा ठीक है। लेकिन सिर्फ़ आज की रात,
उसके बाद कभी नहीं।”
वो खुश हो गई और उसने बताना शुरू किया, “हर लड़की की योनि के भीतर चूत का छेद ढँकने के लिए एक झिल्ली होती है जिसकी मोटाई, आकार एवं आकृति
अलग अलग लड़कियों में अलग अलग होती है। मेरी चूत की झिल्ली पतली रही होगी
और उसका छेद बड़ा रहा होगा जिससे मुझे दर्द कम हुआ और आपने आसानी से फाड़ दी।
राधा की चूत की झिल्ली काफी मोटी होगी और उसका छेद भी छोटा सा होगा जिसकी
वजह से आप उसे नहीं फाड़ पाए होंगे और मोटी झिल्ली में रक्त की नसें ज्यादा
होने से खून भी खूब निकला होगा।”
मैंने कहा, “तो अब मैं क्या करूँ। कैसे फाड़ूँ इस झिल्ली को।”
वो बोली, “प्यार से फाड़ोगे तो हर झिल्ली फट जाएगी। पहले कोई पतली सी
चीज क्रीम वगैरह लगा कर उसके भीतर डालो फिर और मोटी डालो फिर और मोटी।
धीरे धीरे चूत की मांसपेशियाँ ढीली होती जाएँगी। आखिर बच्चा भी तो इसी छेद
से निकलता है। यह ध्यान रहे कि यह काम रोज करते रहिएगा वरना मांसपेशियाँ
फिर अपने पुराने आकार में आ जाएँगी। यह वैसे ही है जैसे कान में छेद करके
अगर कुछ पहना दिया जाय तो छेद बना रहता है वरना भर जाता है। जैसे बच्चा
निकलने के बाद चूत का छेद फिर अपने पुराने आकार में आ जाता है। इस तरह
धीरे धीरे मगर लगातार छेद चौड़ा करते जाइए। अंत में तो आपका भीमकाय लंड है
ही।”
मैंने कहा, “इसमें तो कई दिन लगेंगे।”
उसने कहा, “सब्र करना सीखिए। सब्र का फल मीठा होता है।”
मैंने कहा, “एक बात और पूछनी है।”
उसने कहा, “क्या?”
मैंने पूछा, “तुमने उस दिन संभोग के दौरान कहा था कि आज सुरक्षित समय है। यह सुरक्षित समय क्या होता है?”
उसने कहा, “माहवारी आने के पाँच दिन पहले और खत्म होने के दो दिन
बाद तक का समय सुरक्षित होता है। इसके अलावा बाकी सारे दिनों में वीर्य
योनि के भीतर डालने पर लड़की को गर्भ ठहर सकता है।”
मैंने पूछा, “ऐसा क्यों होता है?”
वो बोली, “अब पूरी बात समझाने में तो मुझे सुबह हो जाएगी। यह समझ
लीजिए कि यदि आप शादीशुदा होते तो पहले सात दिन और बाद के तीन दिन सुरक्षित
होते हैं। लेकिन आप शादीशुदा तो हैं नहीं इसलिए बिल्कुल भी खतरा मत मोल
लीजिएगा। पाँच दिन पहले के और दो दिन बाद के, बाकी के दिन बाहर डिस्चार्ज
के।”
मुझे हँसी आ गई। यह तो वाकई पढ़ाकू लड़की है। या हो सकता है कि मेरे
साथ संभोग के बाद इसने ये सब पढ़ा हो ताकि जान सके कि कब गर्भ ठहरने का खतरा
है कब नहीं।
राखी बाथरूम में गई। मैं बिस्तर पर बैठकर सोचने लगा कि क्या बहाना
करूँ ताकि इसके साथ संभोग न करना पड़े। वो बाहर निकली। उसके शरीर पर सिर्फ़
पैंटी और ब्रा थी। यह लाल वाली पैंटी तो मैंने ही खरीदी थी। जानबूझ कर
मैंने दस में से तीन पैंटी छोटी छोटी खरीदी थी। खरीदते समय मुझे यह पता
नहीं था कि मैं नेहा से संभोग कर बैठूँगा और वो मुझे राखी के साथ संभोग
करने से मना कर देगी।राखी ने पता नहीं कब जाकर लाल रंग की ब्रा भी खरीद
ली थी।
क्या लग रही थी वो। उसका हल्का साँवला रंग बल्ब की सुनहली रोशनी में
जगमगा रहा था। मेरे हृदय ने जोर लगा लगाकर मेरे ल
Desi Choti Golpo
ReplyDeleteBangla Sexy Golpo.
Indian Bangla Choti.
Bhabi Bangla Choti
Sex Story-Adult Jokes.
ReplyDeletebest chudai kahani
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